What is the overview of the availability of international liberalism? (अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए उदारवाद की प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए?)

आदर्शवादी / शास्त्रीवादी उदारवाद (Idealistic / Classical Liberalism)

उदारवाद इस आधार पर आधारित है समाज में क्रमिक रूप से गुणात्मक विकास संभव है शिक्षा और विज्ञान तर्क के विकास से मनुष्य इस समाज को आदर्श समाज में बदल सकता है जब व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार विकास में सहायता देता है तो उसे लिबर्टी का आधार माना जा सकता है /
“टॉमस पेन “-“राइट्स ऑफ मैन “
“हुगो ग्रोटिंस “(1625)- “ऑन द लॉ ऑफ वॉर एंड पॉवर”
“एडम स्मिथ”(1776)-“वैल्थ ऑफ नेशन”
“बेंथम” (1789)-“प्रिंसिपल ऑफ मोरल्स एंड लजिस्टेशन”
राज्यों के हितों में कोई मौलिक संघर्ष नहीं है उनके बीच छोटे-मोटे विवाद है जिनका समाधान संभव है तथा उनके लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का विकास करना चाहिए /
“इम्नुअल कांट “-(1775) “परपेचुअल पिस “
नॉर्मल एंजेल “-“द ग्रेट इल्लुसेन”
यह बहुत बड़ा भ्रम था कि युद्ध बहुत लाभकारी था सच यह है कि यह विजेता राज्यों की शक्तियों समृद्धि को बढ़ा देता है/
वुडरो विल्सन (1918) -“द फोर्टीन प्वाइंट “
वुड्रो विल्सन कहते हैं कि एक युद्ध जरूरी है सभी युद्धों को समाप्त करने के लिए और अर्थात लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए
वह कहते हैं कि सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था राज्यों के लिए आवश्यक है और राज्यों के आत्मनिर्णय के अधिकार को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है अंतरराष्ट्रीय संबंधों में शक्ति की राजनीति को समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता है/

उदारवाद की बुनियादी मान्यताएं–

1- राज्यों के हितों में कोई मौलिक संघर्ष नहीं है इसलिए अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अराजकता का कोई स्थान नहीं है कुछ विवाद है जिनका निपटारा शांतिपूर्ण ढंग से किया जा सकता है/
2- यह राज्यों के हित उनकी प्राथमिकताओं पर आधारित होते हैं ना कि उनकी क्षमता पर यही प्राथमिकता से उनका अंतरराष्ट्रीय व्यवहार निर्धारित होता है/
3- राज्यों के अंतरराष्ट्रीय व्यवहार मूल्य से निर्धारित होने चाहिए राज्यों के अंतरराष्ट्रीय व्यवहार नैतिक मूल्यों पर आधारित होने चाहिए/
4 -राज्यों के अंतरराष्ट्रीय व्यवहार उच्च राजनीति से ही संबंधित नहीं है इसमें निम्न राजनीति भी शामिल है/ उच्च राजनीतिक बल प्रयोजन नीति है जो शक्ति पर आधारित है जिसका उद्देश्य है सुरक्षा , निम्न राजनीतिक सामूहिकता पर आधारित होती है जो सहयोग पर आधारित है जिसका उद्देश्य है शांति ,सहयोग से निरपेक्ष लाभ बढ़ता है युद्ध से बचने का प्रयास करेंगे इसमें दोनों राष्ट्रों का लाभ होगा
5-सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था अपनाना चाहिए जिससे राज्यों को सुरक्षा की भावना समाप्त हो सके लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहिए और सर्वाधिकार को समाप्त करना चाहिए ताकि आंतरिक शांति बनाई जा सके/
6-वैश्विक सरकार की स्थापना की जानी चाहिए ताकि सतत विकास और समृद्धि स्थापित की जा सके/
आलोचना आदर्शवादी उदारवाद स्वप्नलोकिया काल्पनिक है/यह दुनिया को प्रगतिशील संरचना के रूप में देखते हैं परंतु दुनिया इतिहास से सिखाती नहीं युद्ध होना स्वाभाविक है मार्क्सवादी कहते हैं कि शक्तिशाली राष्ट्र दुनिया पर आर्थिक उपनिवेशवाद स्थापित करना चाहते हैं जिससे नए राष्ट्रों का शोषण हो रहा है/ सभी राष्ट्र आज आसुरक्षा की वजह से अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित रहते हैं अराजकता का प्रमुख कारण सुरक्षा का डर और संसाधनों की कमी है/
# वाणिज्यिक उदारवाद
वाणिज्यिक उदारवाद सहयोग और शांति को बढ़ावा देना चाहता है मुक्त व्यापार और वाणिज्य को बढ़ाना चाहता है यह जो अंतर निर्भरता बढ़ती है यही अंतरराष्ट्रीय राजनीति को बढ़ावा देती है /
बेहतर अंतरराष्ट्रीय व्यापारों से अपनी विदेश नीति को चलाते हैं यूरोपीय पश्चिम के राष्ट्र/वाणिज्य उदारवाद का मानना है कि घरेलू बाजार में जो मजदूर की स्थिति या बाजार की स्थिति है यह सभी मिलकर राष्ट्र के व्यवहार को निर्धारित करते हैं/
भारत का सर्विस सेक्टर और मार्केट की वजह से अन्य देशों से भारत के संबंध बेहतर और अच्छे हैं अमेरिका जैसे राष्ट्र का IMF से संबंध अच्छे होने के कारण अन्य राष्ट्र अमेरिका से संबंध अच्छे रखने का प्रयास करते हैं/
जैसे-जैसे सीमाओं से परे मुक्त व्यापार होता है देश के प्रति व्यवहार अच्छे होने लगते हैं देश शक्ति का इस्तेमाल करने के बजाय तुलना करके अपनी समृद्धि बढ़ाने का प्रयास करते हैं विकास के कारण शांति भी स्थापित होती है राष्ट्रों के मध्य इस प्रकार के संबंध से सभी का विकास हो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शांति का कारण बन जाता है/
विकसित राष्ट्रों से विकासशील राष्ट्रों की कुछ मांगे इस प्रकार है
1- राष्ट्रों के मध्य कोई भेदभाव ना किया जाए/
2- एक समान राष्ट्रीय व्यवहार/
3- टैक्स की दरों को कम किया जाए/
4- प्रतिबंधों को हटाया जाए/
5-  विकासशील राष्ट्रों को व्यापार में कुछ छूट दी जाए/
जब राष्ट्रों के बीच अंतर निर्भरता बढ़ती है शक्ति को इस्तेमाल करने का प्रोत्साहन जो होता है उसे घटा देता है युद्ध की संभावनाएं घटती हैं तब शांति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं  अंतरराष्ट्रीय कंपनियां होने से जिस देश में वह है वह देश नहीं चाहेंगे कि जो उन्हें लाभ हो रहा है वह किसी युद्ध के कारण प्रभावित हो /
“टॉमस फ्रीडमैन “-“फॉरेन अफेयर बिग मैक आइस “
 आलोचना-
वाणिज्य उदारवाद तब तक ठीक है जब तक राष्ट्रों की जीवितता और संप्रभुता सुरक्षित है/तब क्या होगा जब कोई देश अपना दूसरा विकल्प ढूंढ ले जैसे आसियान में अपना बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर ढूंढ रहा है चीन को काउंटर बैलेंस करने के लिए/वाणिज्य उदारवाद पूंजी को दुनिया का सम्राट मानता है
#समाजशास्त्रीय उदारवाद-
समाजशास्त्रीय उदारवाद में केवल राष्ट्रओ के बीच संबंध नहीं होते हैं राज्य और समाज का संबंध राज्य की सीमाओं के पार राज्य, समुदायों, लोगों, संगठनों के बीच संबंध रहते है /
कार्ल ड्यूस(1907)-“पॉलिटिकल कम्यूनिटी नॉट एटलॉन्टिक एरिया “
वैश्विक स्तर पर पारराष्ट्रीय संबंधों के बढ़ने से एक सुरक्षा समुदाय बन सकता है जो एक दूसरे पर आक्रमण ना करें और विवादों का निपटारा समुदाय द्वारा हो सकता है ऐसे समुदाय बनाने के लिए सामाजिक संप्रेषण की आवश्यकता है सामाजिक आदान-प्रदान की आवश्यकता है आर्थिक संबंध अच्छे होने की जरूरत महसूस होती है /
संचार होगा तभी यह संभावनाएं बढ़ेंगे संचार के साधनों का प्रयास वर्तमान में किया गया है जिससे ऐसे समुदाय बनाए जा सके/
जॉन बर्टन “-“द वर्ल्ड सोसाइटी
एक सदस्य या राष्ट्र कई संगठनों का सदस्य हो सकता है अंतरराष्ट्रीय संबंधों में यह स्थिति मकर जाल का निर्माण करती है/
“जेम्स रोजेम “-(1980) “द स्टडी ऑफ ग्लोबल इंटर डिपेंडऐंस “
आलोचना – संचार के साधनों का विकास या लाभ समान रूप से राष्ट्रों को प्राप्त नहीं है/
# अन्नोआश्रित उदारवाद-
अन्नोआश्रित उदारवादी या मानता है कि राज्यों के मध्य परस्पर अंतर निर्भरता बढ़ने से उनके आपसी संघर्ष की संभावना  घट जाती है/आर्थिक विकास और वैश्वीकरण यह महत्वपूर्ण तत्व है जो राज्यों के अंतर निर्भरता को बढ़ा सकते हैं / जब अंतर निर्भरता बढ़ती है तो यह बड़ी मात्रा में सहयोग को बढ़ावा देते हैं/
आज की युग कल्याण की भावना राज्यों के मध्य अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बढ़ गई है अब सैन्य युद्ध काम हो गया है आधुनिक युग में आर्थिक युद्ध दिखाई देने लगा है जैसे-जैसे वैश्वीकरण का प्रभाव बढ़ता जा रहा है इससे नए प्रकार के अंतरराष्ट्रीय संबंधों का विकास हो रहा है/प्रसिद्धि और समृद्धि के राजनीतिक राज्यों के लिए महत्वपूर्ण हो गई है /
डेविड मित्रानी-“ए वर्किंग पीस सिस्टम “
गैर राजनीतिक क्षेत्र आर्थिक और सामाजिक सहयोग करेगा तो उसेसे राजनीतिक सहयोग बढ़ाने लगेगा/गैर राजनीति में जो सहयोग हो रहा है उसेसे राजनीतिक क्षेत्र में सहयोग बढ़ता दिखाई देता है यही सहयोग शांति निर्माण में सहायक होता है/
रॉबर्ट कोहेन ( 1977)-“पावर एंड डिपेंडेंसी “
राज्यों के मध्य अंतर निर्भरता उतनी प्रभावी नहीं थी कि युद्ध को रोक सके जैसे वैश्वीकरण के कारण जैसे-जैसे शक्ति का विकास होता है वैसे-वैसे गैर राज्य कर्ताओं का विकास होता है यह राज्य के अंदर होते हैं और बाहर भी होते हैं जब यह आपस में संबंध बनाते हैं अंतर निर्भरता बढ़ती है इनका कार्य समृद्धि विकास करना होता हैऔर यही उद्योगपतियों के द्वारा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में संबंध और अच्छे बनाने का प्रयास किया जाता है/
निवेश, व्यापार ,आर्थिक समृद्धि ,निम्न राजनीति ये सभी राज्यकर्ताओं और गैर कर्ताओं के बीच केंद्रीय विषय बन जाते हैंउच्च राजनिति जिसमें संप्रभुता ,जीवित आती है इसके सामने कमतर हो जाती है/
यह अंतर्निर्भरता जटिल हो जाती है निवेश व्यापार आर्थिक समृद्धि के कारण इस स्थिति में राज्यों के मध्य संबंध केवल सरकारों के बीच संबंध नहीं रह जाते हैं सरकार की विभिन्न अंगों ,खंडों ,शाखाओं के बीच भी अंतर संबंध बढ़ने लगते हैं निम्न राजनीति का महत्व उच्च राजनीति से बढ़ जाता है सैन्य शक्ति का महत्व कम हो जाता है गैर राज्य अभिकर्ताओं और गैर सरकारी संगठनों का महत्व बढ़ने लगता है/
# गणतंत्रतनात्मक उदारवाद-
यह मानता है कि लोकतांत्रिक गणराज्यो की स्थापना से शांति को स्थापित किया जा सकता है विश्व के देशों में लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने से विश्व में शांति को कई गुना बढ़ाया जा सकता है लोकतांत्रिक शांति सिद्धांत गणतंत्र उदारवाद लोकतांत्रिक शांति सिद्धांत पर आधारित है लोकतांत्रिक शांति सिद्धांत यह कहता है लोकतांत्रिक राज्य है वह शत्रुता से बचते हैं और किसी ज्ञात या सुनिश्चित लोकतांत्रिक देश में सशस्त्र युद्ध से बचते हैं यह लोकतांत्रिक देश युद्ध से चार कारण से दूर रहने का प्रयास करते हैं /
1- लोकतांत्रिक देश विधि के शासन के प्रति प्रतिबद्धता रखते हैं/
2- व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता /
3- लोगों के कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता /
4- लोकतांत्रिक सरकार में सरकार के रूप में जो प्रतिनिधि होते हैं वह लोगों के लोकप्रिय सहमति पर आधारित होते हैं उनका कल्याण करना उनकी सुरक्षा करना उनके परम कर्तव्य होता है/
इन चार कारण से लोकतांत्रिक देश शत्रुता स्वतंत्रता से बचते हैं /
इमैनुअल कांट अपने परपेचुअल पीस में उन्होंने युद्ध के दो कारणों को बताया है/
1- देश में घरेलू स्तर पर लोकतंत्र की कमी; लोगों की सहमति पर जो सरकार है वह भी युद्ध नहीं करेंगी इस सिद्धांत का मानना है कि सत्तावादी राज्य सर्वाधिकार राज्य है वही युद्ध शुरू करते हैं
2- अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में गलत संस्थाएं हैं इन्हीं संस्थाओं के द्वारा अराजक व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाता है जब विश्व में अंतर्राष्ट्रीय लोकतांत्रिक संस्थाएं स्थापित की जाएगी तब अराजकता को पूरी तरह समाप्त किया जा सकता है और शांति को स्थापित किया जा सकता है
वुडरो विल्सन -(1918) “फोर्टिन प्वाइंट “
वुड्रो विल्सन का कहना है कि अमेरिका पूरी दुनिया को लोकतांत्रिक स्थान बनाने का लक्ष्य रखता है उनका मानना है कि शांति हासिल की जा सकती है अगर गुप्त संधि गुप्त कूटनीति के पुराने विचार को सामूहिक सुरक्षा के विचार के द्वारा प्रतिस्थापित कर दें/
1986–”अमेरिकन पॉलिटिकल साइंस रिव्यू “(आर्टिकल)
माइकल डओविल इस आर्टिकल में कहते हैं कि जो लोकतांत्रिक शांति को बढ़ावा देते हैं वह युद्ध के बजाय लोक कल्याण में विश्वास रखते हैं/
उदारवादी लोकतंत्र सहभागिता की बात करते हैं और उनका मानना है कि इसी से सभी का विकास संभव है उनका कहना है कि ऐसी स्थिति में शांति को स्थापित किया जा सकता है शांति आएगी तो सहयोग बढ़ेगा आत्मनिर्भरता बढ़ेगी क्योंकि उनका उद्देश्य व्यापार को बढ़ाना विकास को बढ़ाना है तो अंतर निर्भरता स्थापित होगी अंतर्निर्भरता स्थापित होगी तो शांति स्थापित होगी अंतरराष्ट्रीय ट्रेड को करने के लिए को लॉ बेस्ड ऑडर की आवश्यकता होगी जिसके लिएअंतरराष्ट्रीय संगठन  स्थापित होंगे यह संगठन लोकतांत्रिक होंगे जो शांति को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे/
आलोचना-
1- लोकतांत्रिक राज्य आपस में युद्ध नहीं करते हैं या गलत है जो लोकतांत्रिक राज्य है उन्हें युद्ध में लोकतांत्रिक मूल्यों को महत्व देना चाहिए पर इनका उद्देश्य अपने हितों का पूरा करना होता है/
2- लोकतांत्रिक राष्ट्र भी जहां पर उनके हितों में टकराहट होती है वहां पर वह भी एक दूसरे पर भरोसा नहीं करते/
संस्थात्मक उदारवाद-
उसकी मान्यता है जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं सहयोग को बढ़ाने में केंद्रित भूमिका निभाती है इस प्रकार सहयोग से राज्यों के मध्य समय के साथ प्रतिस्पर्धा और संघर्ष खत्म हो जाते हैं यही मान्यता है  संस्थागत उदारवाद की/
स्थाई शान्ति वो है जो राष्ट्रओ को अलग-अलग रखने से प्राप्त नहीं होगी इसकी बजाय उन्हें सक्रिय रूप से साथ-साथ लाने से शांति स्थापित होगी परंतु यहां भी कह सकते हैं कि साथ-साथ लाने पर संघर्ष हो सकते हैं इस स्थिति में संस्थात्मक उदारवाद जवाब देते हुए कहता है कि यह संघर्षों प्रतिस्पर्धाओं के होने से अंतरराष्ट्रीय स्तर में अराजकता बढ़ती है इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उसकी जो आलोचना की गई है वह गलत है वह वास्तविकता को नहीं दिखता है यह वह चमत्कारी दुनिया को बसाने का प्रयास नहीं करता है इससे यह कम आशावादी दिखाई देता है/
अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था अराजकता कौन है क्योंकि यह जंगल के समान है हम इस जंगल को चिड़ियाघर बना देंगे खूंखार जानवरों को एक पिंजरे या बड़े में रखा जा सकता है अर्थात खूंखार जानवरों अर्थात अराजक राष्ट्रों के व्यवहारों को अंतरराष्ट्रीय कानून बनाकर उनके व्यवहारों को नियंत्रित किया जा सकता है ऐसी स्थिति मे जो शक्तिशाली है उनका प्रभु नहीं रहेगा इसमें सभी को एक जैसा व्यवहार करना होगा/शांति केवल कागजों पर नहीं हो सकती शांति टुकड़े-टुकड़े में लाई जा सकती है शांति धीरे-धीरे होगी पहले राष्ट्र सहयोग के लिए साथ-साथ  लाए जाएंगे कुछ मुद्दों पर राष्ट्रों के सामान मत होंगे और कुछ मुद्दों पर संघर्ष भी संघर्ष के मुद्दों को छोड़कर पहले उन मुद्दे जहां इंटरेस्ट समान होंगे उन्हें हल करने का प्रयास किया जाएगा/
संस्था आत्मक उदारवाद साझा हितो उनको हासिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन की क्षमता पर भरोसा करता है/
रॉबर्ट कोहेन एंड जोसेफ नाई -“power and interdependent
“रॉबर्ट कोहेन” -आफ्टर हेजेमनी
कोहेन कहते हैं कि ,अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था किसी प्रभावी शक्तियां या फिर शक्ति अनुक्रम के बिना भी स्थिर रह सकती है अंतरराष्ट्रीय संस्था की मदद से/कोहेन कहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में जो बाधाए है संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था में वह इस पर विचार कर सकते हैं और किसी भी बात में राष्ट्र अन्य राष्ट्रों का सहयोग देकर अपने मत को भी प्रकट कर सकते हैं इनका मानना है कि इन संस्थाओं द्वारा सहयोग बढ़ाया जा सकता है/
ऐसी संस्थाओं का विकास तभी होगा जब लोकतांत्रिक मूल्यों को महत्व दिया जाएगा सहयोग उदार लोकतंत्र से बढ़ेगा तो सहयोग और अधिक गहरा होगा क्योंकि उनका उद्देश्य कल्याण करना होता है उदारवादी लोकतंत्र के द्वारा जो संस्थाएं स्थापित होगी वह भी लोकतांत्रिक होगी वह भी अंतरराष्ट्रीय कल्याण की नीति बनाने का प्रयास करेंगी/अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के द्वारा स्थिरता लाई जा सकती है अराजकता या प्रभुत्व को समाप्त किया जा सकता है कुछ राज्य अपना  प्रभुत्व रखने के लिए अन्य राज्यों को सहयोग से रोकते हैं क्योंकि दूसरी शक्तियां जब सहयोग करेंगे तो उनकी सत्ता को चुनौती मिल सकती है/
अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं विश्व सरकार नहीं बल्कि यह ऐसा उपक्रम है जो राष्ट्रों के मध्य विकेंद्रित सहयोग को बढ़ावा देने की बात करता है/
ओरोन यंग”-(1989) “इंटरनेशनल कॉपरेशन बिल्डिंग रिजीम नेचुरल रिसोर्सेस इन्वायरमेंट “
अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं जैसे-जैसे प्रभावी होने लगेंगे तब वह वैश्विक सरकार का रूप ले लेंगे यह वैश्विक सरकार राष्ट्रों के व्यवहारों को संतुलित करेंगी और पर्यावरण जैसे वैश्विक मुद्दों और जनकल्याण की नीतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी
आलोचना –
जोसेफ ग्रीको (1988)-“अनार्की एंड द लिमिट ऑफ़ कॉर्पोरेशन”
ग्रीको कहते हैं कि संस्थात्मक उदारवाद ने अराजकता को गलत तरीके से समझाया है वास्तव में अराजकता का मतलब है ,संघर्ष का कारण है संसाधनों की कमी सुरक्षा कब है इसी वजह से अराजकता बनी रहती है संसाधनों की कमी को खत्म नहीं किया जा सकता सहयोग से शक्तिशाली और अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं और कम शक्तिशाली और काम शक्तिशाली हो जाते हैं
जो मार्क्सवादी आलोचना करते हुए कहते हैं कि इन संस्थाओं को इसलिए स्थापित किया गया है की वैश्वीकरण की वृद्धि हो सके  इसलिए ही ये पूंजीवाद को बढ़ावा देने के लिए सहयोग की बात करते हैं और आर्थिक उदारवाद अब संस्था आत्मक उदारवाद में बदल गया है/

 

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